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                   The men in love They are so beautiful             The men in love wearing their hearts on sleeves              looking at you from daybreak to eve high on mere forehead kisses             dying to fulfill your wishes audacious enough to make you cry             and still will hold you             till you say a loving goodbye pretending to go on days without you            and making it through midnight rains             running to you mischievous with that little smile            when they catch you            looking at them for a while all the brothers and fathers in the world           they come in one            as the men in love
    वो मुँह बोले रिश्ते कितने नाजूक से होते हैं               वो जो मुँह बोले                 रिश्ते होते हैं ढँके ढँके से होते हैं               परछाई में ही तो               पले होते हैं कोई कहे ममता से भर दूँ मैं तुझ को            जिन के आँचल            बस हक से फैले होते हैं वो जो कहता है भाई है मेरा             गद्दारी से तो             उस के भी पैर मैले होते हैं मुँह बोला तो कोई हमसफर भी था             देखा है आज उस की आँखों में             किसी और ही के सपने होते हैं हम करते रहे वफा            वो दुनिया का             चलन निभा गए जैसे हम तो           लफ्जों से शुरू           और लफ्जों तक ही खत्म होते हैं अब गिला करे भी तो किस से            अब हम कहाँ             दुहाई भी देते हैं क्या ही शिकायत करे            आखिर पराए कहाँ            अपने होते हैं ?              
         मैं कहनेवाली हूँ वो बोली, हे भगवान           आज मैं जलनेवाली हूँ पहली बार तेरे होने की          दुवा करनेवाली हूँ तू है अगर, बचा ले मुझे           मैं आखिरकार कहनेवाली हूँ और क्या वाहवाही करवाई खुदा ने         जलती जिंदगीयों पे रहमत बरसाई एक और बंदा बना लिया         जो कहे मैं तुझे ताउम्र पूजनेवाली हूँ वो औरत तो रह गई        जो रह नहीं पा रही        मैं उस की कहनेवाली हूँ हर किसी के घर में तो           आग नहीं लगती कैसे यकीन दिलाऊँ         फिर भी मैं मरनेवाली हूँ बूंद बूंद बह जाता है         होना मेरा, अश्कों में एक चमत्कार तो          मैं भी चाहनेवाली हूँ वर्ना महल सी मैं           एक दिन ढहनेवाली हूँ क्या एकदम से बेसाँस हो जाना            यही एक अंत है ? कैसे बताऊँ आस्तिकों            मेरी बुझी उम्मीदों की तरह           मैं भी ढलनेवाली हूँ एक घाव और दो टुकड़े           ऐसे भाग सब के कहाँ रुक रुक कर, मर मर कर           फिर भी मैं जीनेवाली हूँ  
                        बकाया जी तो चुके हैं                 पर अभी जिंदगी बाकी है उस कयामत की मौत से पहले               मुझ पे हँसी क़ी कुछ छिटें बाकी हैं घुंगरू टूट चुके हैं                वो गीत सब गा चुके हैं पर अभी उस पे                मेरा नाचना बाकी है कमा लिया है                खर्च कर चुके हैं जमापुंजी के इस व्यापार में                मेरी मेहनतों की नगद बाकी है जोड चुके हैं                 हम तोड भी चुके हैं पर अभी इन रिश्तों से                 कुछ अपनापन बाकी है निभा गए हैं सारे वादें                जिम्मेदारियाँ उठा चुके हैं अब कुछ मेरे हिस्से में                हक के फैसलें बाकी हैं ए खुदा, तूने लिया बहुत है              तुझ से मेरा बकाया काफी है
               छोटी सी है जिंदगी छोटी सी है जिंदगी                 और हम बड़े हैं  हाँ लोग कहते हैं                  इतने सारे जो काम पडे हैं  दफ्तर पीछा ना छोड़े                 इतवार जो खर्चों से जुड़े हैं  एक दिन ही सही                 जी लो मगर  अपनों के फरमान जो                  सर पे चढ़े हैं  एक और किश्त मकान की                 बस सुकून के ही तो रंग उड़े हैं  बची अब कितनी                 गिनती घट रही  खाली हाथों में                 ख्वाहिशों के ढेर खड़े हैं 
                वो इष्क है तोडकर उस को            जब तुम खुद बिखर जाओ            वो इष्क है बिछडते वक्त भी            उस के कदमों तले अपने दिल को रौंद आओ            वो इष्क है उस की जरा सी प्यास को             अपने आखरी कतरे से बुझाओ             वो इष्क है आहट हो किसी और की मन में उस के             और तुम अपना उजडा जहन भूल जाओ             वो इष्क है
 देख तो रहे हैं बस बोल नहीं रहे और वो समझे  हम कुछ समझ नहीं रहे चल जिंदगी, तू कौन सी अभी खत्म है ? एक बेवफा, रहे या ना रहे
                     आजादी    सोचा था आजाद हूँ  है कोई ना बढ़कर साथी  जब चाहूँ लगा दूँ   दिल ही तो है नहीं जागीर किसी की  देखती थी तितलियाँ  और कहती, ये तो मैं हूँ कोई और नहीं  एक दिन फिर मुझे वो दिखी  छोटी सी पीली वाली नाजुक सी  जिस का जिक्र किया था उस से  कहा था मैंने ये मेरी है  फिर वो खुद याद आया  जिस ने कहा था तू मेरी है  उस के पीछे-पीछे आ गए  ढेरों लम्हों के पत्थर  आए थे भाग भाग कर  अब बैठे हैं मेरे आजाद दिल की फर्श पर  समझ नहीं आता  वो कैद हैं खुद  या कर ली है कैद उन्हीं ने  हाँ वही वो आजादी मेरी  हर एक नए पहर में  उठ खड़ी हो जाती है  एक वही पुरानी याद  जंग छिड़ जाती है उन में  और मैदान बन जाती है  वही मेरी आजादी  हर नयी पहचान को  तार तार कर देती हैं  वही पुरानी बंदीशें  समझ तो रही हूँ  ना दिल आजाद है ना मैं वो चला गया  अपने लम्हों के साथ  पर बाकी तो हैं  अभी उस के दिए सारे घाव  वो मुझे बुलाती हैं वही मेरी तितलियाँ  वो जो नहीं जानती  नहीं उड़ पाऊँगी मैं  इन कटे परों के साथ  जान गई हूँ फर्क मैं सारा  उन का मेरा, ना एक फसाना
                       सौदा  एकरंगी था चोला मेरा  सर से लेकर पाँव तक भी  इश्क में सना था हर तिनका  इश्क ही हो जैसे आर भी पार भी  क्या बाजार था वो भी  एक  ही रंग से किसे प्यार था ?  था चाहिए उन को नकाब भी  चोले से क्या ही हो सरोकार भी ?  था एक अजनबी उन में ही छुपा भी  बोला एक नकाब है मेरा भी  जब ठंड लगती है  जरूरी तो है तेरा चोला भी  कह गया मेरी सिलाई कायरता की टाँका बुना है छल से भी  असमंजस से जगमगाया था वो अस्तर भी  आना था जो पसंद दुनिया को भी  हुआ एक सौदा ऐसा भी  ओढ़ गया वो मेरे चोले से खुद को भी  जब कीमत पड़ी चुकानी  बोला ढँक लो लाज मुझ संग इस नकाब की भी   वो अब लिए घूम रहा है  हररंगा नकाब और मेरा एकरंगा चोला भी  और मैं खड़ी हूँ सरे बाजार  ना इश्क, ना छल, ना रही अब आबरू भी 
 मैंने देखा है उस को               तुम्हारे हर कायदे पे चलते हुए  उस की बिखरी दुनिया में भी              खुद को बखूबी समेटते हुए  हर अन्याय पर अपने उठते हाथ को              आँचल से अपने ही कसते हुए  रखती थी आग जिंदा                आने वाली नस्लों में  वो जो देख रही थी                खुद के अरमानों को राख होते हुए  अब वो सोचती है                लाश से अपनी गुजरते हुए  क्या तुम बन पाओगे                उस के जैसा उस के लिए ?  कब तुम ने छोड़ी थी सपनों की चादर               उस के पैरों तले रौंदते हुए ?  क्या कभी तुम ने रोका था खुद को              झूठे इल्जाम झुक कर सहते हुए ?  हँसती है वो अब तुम को देख कर              एक आधे इंसान का शोक मनाते हुए                                
 मान लो तो जन्नत ना मानो तो जहन्नुम  कोई बयान करें तो कैसे  वीरानियाँ भी अब लगती तरन्नुम  कैसा गिला? अब किस बात का है गम ?  यूँ जो छूटे हैं तुझ से  खुद से ही मिल गए हैं हम  कह देना बेवफा हूँ  या बोल दो बेरहम  बेगैरत होने से बेहतर है  अब हम सुनते हैं कम  जिसे ना रास्तों से इश्क , ना मंजिल से  उस बंदे के लिए  क्या खुदा ? क्या तू भी ए सनम ?
  रूहों को जिस्मों से अब मुड़ जाने दो टूट जाने दो  सुकून से भरे  सारे लम्हों का भँवर मिट जाने दो छवि तुम्हारी इन नज़रों से इकलौता तारा थे तुम जिन का  महक तुम्हारी साँसों से मेरी खींच लो सबब जो थे तुम इन का   धुल जाने दो छुअन तुम्हारी मेरी खाल से जिसे ओढ़ा था तुम ने मलमल सा   हो जाने दो  हर जख्म वो ज़िन्दा   एक तुम ही मरहम थे जिन का तुम्हारे होने से सहमा था जो  उस गहरे डर का पिंजरा फिर से खुल जाने दो  आजादी को मेरी  कैदी हो जाने दो  तुम्हारी बिछड़ी प्रीत का 
Well, he likes me, my husband. Sometimes, he even cares for me. He has got used to me but he is not in love with me. That's the one thing, we agree upon once for a change. His idea of love is quite different and actually naive. It clearly shows, he doesn't know what love is. He doesn't even have the slightest idea of how it is to love someone and I, who has been and is in love, who has lived love, breathed love, am his wife. What an irony! It hurts. It hurts to know this. It hurts to accept this. But, that's the ultimate truth. And,  since I know how it is to have someone etched in your soul, on your body, in your mind, I understand how poor my dear husband is. I pity him.  Although that will threaten my well being, I wholeheartedly pray to God that someday he also finds his true love. He also discovers this burning desire for a single person. May God bless him with this power to love. Perhaps, then and only then, he will be more human. I want him to have his love. I wa
People are not meant to be happy. They are not born to achieve a perfect life. It's us, who have created this myth, that each soul should have his satisfaction. Well, life certainly doesn't do that. What a person needs to be happy ? Which are those few things people think are mandatory to be happy ? A few, countable on fingers of our hands. Enough money, a sound body, some respect and love. And yet, very few have all of these. We keep slogging for more money. Health, a good one, is bestowed upon many, but not all. Respect,  that's the relative concept. Many pine for it and don't get it even after a lifetime. And many don't even understand whether they have it enough.  And at last, love. What a delusion! We, all chase it. Some love and don't get it in return. Some don't and get it in abundance and don't even want it. A few lucky ones, love and get loved by the same person. But,  there are many who don't love and don't even get it. Therefore, love
 अब अगर हर चौखट पे माथा टेकूँ  तो वो भगवान कैसे हो ?  तू कह दे तो तेरी हर शर्थ मानूँ  ये तो कारोबार जैसे हो  हो जाती हैं खताएँ सब से ही  यहाँ कोई पाक कैसे हो ?  गर हर खता पे आजमा लूँ  तो वो गुनहगार कैसे हो ?  नहीं करनी है हर टूटे रिश्ते की मरम्मत पीठ फेरूँ और कोई जख्म ना खाऊँ  अब ये ऐतबार कैसे हो ?  यूँ तो बड़ी देखी है  चाहतों की नुमाइश  एक मौका ही दे दूँ  और पछता ना जाऊँ  अब इस दुनिया में  ऐसा प्यार कैसे हो?  करने को तो  ये दरिया भी पार कर जाऊँ  पाने को तुझ को  जहर का घूँट भी पी जाऊँ  पर इतना बतला दे मुझ को  इस कुर्बानी का  तू हकदार कैसे हो ?
 लगता है  थम गया है  ये वक्त जैसे ठिठुर गया है कभी लगे  उसे उबाल लूँ  जमाने के साथ बहने लगे वो भी कुछ थोड़ा वो भी जीने लगे उस को भी तो दिखे ये आसपास की रौनक क्यों ना उसे भी इस दौड़ की लत लगे ? अभी तो वो थक गया है ओढ़ रखी है उस ने सन्नाटे की चादर क्यों ना उस को भी  पहली बारिश में भिगोया जाए ? दो कतरा धूप में उस को डुबोया जाए  कभी कहता है इस में रखा क्या है?  तुम्हारी भागती रास्तों का आखरी पता क्या है ? कैसे समझाऊँ उसे शौक मंजिलों का अब रहा नहीं पर रुक जाने का भी तो कोई सबब ही नहीं  अपना बसेरा इस सफ़र से जुदा कहाँ है ? ये वक़्त जो तू ना चले  तो वो खुदा ही कहाँ है? ऐ वक़्त, तू ही तो खुदा है तू ही तो खुदा है 
 नहीं मालूम के इस दुनिया का  रिवाज क्या है  जो तू ना हो  तो मुझे किसी से लिहाज क्या है  होते होंगे लोग फरेबी  होती होंगी मोहब्बतें चंद पलों की  होती होंगी जिंदगियाँ  जुदाई के बाद भी  होती होंगी रिवायतें  किसी के अपनों के बाद भी  होता हो या ना हो  मेरा इन से ताल्लुक क्या है  शायद मैं थी  तुझ से पहले भी  शायद मैं रह ही जाऊंगी  तेरे बाद भी  पर वो पहले वाली मैं  मुझे अब याद नहीं  बाद वाली मैं को  मैं चाहती भी नहीं  जो हूँ तेरे साथ हूँ   जैसी हूँ तेरी हूँ   जहाँ हूँ तेरे लिए हूँ   बस तब हूँ जब तू हो 
    बेवफा  ठान लो अगर  हर चीज मुकम्मल होती है   बस उन से उम्मीद ना करना वफा की  फितरत में ही जिन की गद्दारी होती है  आज इस के तो कल उस के हो जाते हैं  चंद कौड़ियाँ, कुछ रुतबा या कभी खुदगर्जी  हाँ,उन की बिक जाने की भी तैयारी होती है
क्या होता है उन का? पंख जिन के होते नहीं आसमान से बौने वो होते नहीं पर जमीन से आगे की सोचते ही नहीं क्यों आते हैं वो ख्वाब जिन को भोर मिलती नहीं दिन का सूरज उन को याद नहीं करता और रात की चांदनी निगल पाती नहीं कैसे गुजारा होता है उन का ? एक पहर भी जिन की टलती नहीं आँसूओं से भी प्यास बुझती नहीं कल की भूख भी तो उन को छूती नहीं कब रुक जाते हैं वो लोग ठिकाना जिन का कहीं होता नहीं कहाँ से निकले थे खोज पाते नहीं मंजिलें भी जिन को अपनाती नहीं कहाँ छुप पाते हैं वो पल जिन के होने का किसी को इल्म तक नहीं झूठलाओ तो भी वो जो मरते नहीं नुमाइश की चंद साँसें भी उन के हक में नहीं 
 सोचती हूँ          कुछ बचा है भी के नहीं अंदर से खोखली सी          महसूस होती हूँ इस कदर खा गयी           तेरी चाहत मुझे तेरी हर ख्वाहिश तले          मैं खुद को बो देती हूँ  एक तेरा अक्स           मुझे रखता है ज़िंदा वर्ना यूँ तो          मुझ में "मैं " कहाँ होती हूँ ?
                      ये फासलें जख्म वहीं हैं             पर दर्द नए नए से हैं न जाने क्यूँ            अब के तो वो भी पराए से हैं फटे हुए सपनों की चादर             ये टुकड़े भी सारे लगते सियें से हैं कुछ हल्की धूप, कुछ चुभती सर्द           किस बासी धुंद में हम सोए सोए से हैं समझ नहीं आता            या कुछ समझ से फिसले से हैं ये कौन सी नज़दीकियां हैं            फासलें भी जिन से बेहतर से हैं 
 चलो फिर से               ये बोझ उठाया जाए  समेट के रखा हुआ               हर टुकड़ा छुआ जाए  रखे हैं जो कदम एक बार                उस घर से बाहर कहीं राहत मिले                इस से पहले हर मकान बदला जाए  अब मंजिलें भी                 लगती हैं सफर सी  कोई रोक भी ले                कब तक यूँ कोई सताया जाए 
 अब लालच इतना है                   इंसान का  डरता है खोने से उसको भी                   जो  है ही किसी और का  यह कैसा गुनाह है                   बताए कोई  जी भी लेते हैं तो                    कर्ज चुकाते हैं हर एक मुस्कान का  कभी सोचते हैं                    अब चल ही देते हैं  क्या ही कमा लेंगे हम जिंदा                    जब हर सुख है उधार का                 
                    प्रीत तुझी  अनंत काळापासून             अनंत काळापर्यंत  प्रतीक्षेच्या पहाटेपासून            आशा निराशेच्या हिंदोळ्यापर्यंत  तू नव्हतास तेव्हापासून                तुझे असणे माझ्यात भिनेपर्यंत पहिल्या कटाक्षापासून              तुजविन मी मला न दिसेपर्यंत  स्पर्शाच्या आतुरतेपासून              श्वासांच्या मिलनापर्यंत शब्दाच्या छुप्या अर्थापासून              मूक परिणयापर्यंत मी मला जाणवल्यापासून               फ़क्त तू उरेपर्यंत प्रीत तुझी व्यापलेली              माझ्या स्पंदनांपासून त्या दूर क्षितिजापर्यंत 
 बेशक तू है तो बड़ा प्यारा  पर क्या जब भी वो चाँद दिखे  तू मुझे सोचता है ?  चाहता है मुझे अपनी जान की तरह  पर क्या जब भी बारिश होती है वो अपनी पहली बार तू याद करता है ?  मेरे हर आँसू पे तू भी तो टूट जाता है  पर क्या तू वो है  जो मेरी हर मुस्कान पे हर बार मिट जाता है ?  भटकी नहीं है तेरी निगाह यहाँ वहाँ कभी  गुरुर इस बात का मुझे भी है  पर क्या हर वो खुशबू  जो तुझ से होकर गुजरती है  महक उस में तू मेरी ही पाता है ?  यकीन तो तब हो  के तू मेरा है गर  हर आँचल  जिस ने तुझे छुआ है  लगा जैसे तूने मुझ को ही अंग लगाया है 
 अब जुबान खामोश है  तो खामोश ही रहने देते हैं  कब तक किसी के लफ्जों में  तलाशेंगे खुद को ?  क्या सच क्या झूठ  अब फर्क क्या पड़ता है ?  इन सब से परे  चाहा था ना तुम को  छुअन में क्या है तुम्हारी ?  मेरी तड़प या चुभन बेचारी  ढूंँढ कर भी कर लेंगे क्या  कैसे समझा पाएँगे इस दिल को ?  ये मसला तो बस  तुम्हारी एक नजर का है  मैं कल महफूज थी जिस में  और आज सुना है झाँकने की इजाजत है सब को  
 दर्द है या है इश्क  जो जीने नहीं देता  निकाल तो देता है रूह  पर उस पार वाली दुनिया को छूने नहीं देता  कुछ धूँधली सी है नजर  कुछ फँसी सी है ये जान  कहीं मैं निकल जाऊँ   और वो ना आ जाए  हाय, ये भरम अब मुझे मरने भी नहीं देता 
                  काश ऐसा भी कभी होता  काश ऐसा भी कभी होता  उन आँखों को भी हमारा इन्तजार होता  हर लफ्ज़ बन जाता शहद की बूँद  के गर उन को भी इस आवाज के अलावा   हर शोर नागवारा होता  अभी कहते हैं सब्र कर लिया करो  बेफजूल की बातों से किसी का गुजारा नहीं होता  इस जान का क्या है  छोड़ आते ये रूह भी   के बस एक बार हाँ बस  एक ही बार  उन्हों ने भी हम पे वो दिल हारा होता 
  गलतफहमियों की कोई हद नहीं होती  भला बेवकूफियों की क्या कोई ज़िद नहीं होती ?  गिरता उठता पाबंदियों में भी जी लेता है इन्सान  वर्ना यूँ तो आजादी से बढ़ के कोई लत नहीं होती 
               ये क्या कर गए हम              क्या छूटा, क्या मिला                          नहीं जानते हम             क्या कुछ कर गए उस के लिए                       कैसे समझाएँ हम             वजह हो गए                       उस के फक्र की             कमल पत्ते पर बसी                      वो पानी की बूँद बन गए हम             बस एक इशारा उस का काफी था                     और छोड़ उसे बिन छुए बह गए हम              
                      बीती बातें  बीतें कई साल, कई बारिशें  बीती हैं कई रातें, कई ख्वाहिशें  पर मेरे दिल की किवाड़ों पे  रुक रुक के जो दस्तक दिए जा रहा है  कैसे कहूँ उस दर्द से, के वो भी बीत जाए  छोड़ दे इस मकान को अब  जहाँ अब ना उगते सूरज की धूप आती है  ना ढलती शाम का मजा  बताऊँ कैसे ये चौखट अब  अनछुई सी है  नहीं चूमती इन दीवारों को  अब कोई परछाई  हाथ पकड़ के कहीं दूर छोड़ तो आऊँ  पर अब डर सा भी है  के कहीं मैं ही ना लौट पाऊँ 
                      काला टिका  लगा देते हैं काला टिका  के लग ना जाए नजर किसी की तुम से अलग होना किसी काले टिके से कम नहीं हुआ  हकदार हो गई हूँ मैं भी अब कुछ रहम की  नवाजी जाती हैं खूबियाँ मेरी  पर तुम्हारा मेरे साथ ना होना  बना देता है मुझ को लड़की एक आम सी  बटोर तो लेती हूँ सारी तारीफें  पर बयाँ कर  नहीं सकती  क्यों मेरी पहचान ना बनी तुम्हारे नाम की   मिलती है सारी दुनिया की मोहब्बत  फिर भी जाने जमाना सारा  मैं हूँ बस प्यासी तुम्हारे दीदार की  कर ली है बेवफाईयाँ मैंने भी थोड़ी बहुत  पर रब जानता मेरा है  मैं नहीं तुम बिन किसी और की  इस के साथ,उस के साथ  तुम को मैं देख भी लेती हूँ  समझ जाती हूँ, नहीं भी कभी  कि क्यों फिर भी  तुम को आस है मेरी ही एक झलक की  कहते हैं प्यार लफ्ज़ों में कहाँ   पा लेना ही तो बस इश्क नहीं  तो बात यह भी है  किस धागे से बनी डोर तुम्हारे मेरे ऐतबार की 
                   तजुर्बा  बड़ी शिक्षा मिली थी मेरे मास्टर जी से बोले दिख जाएगा तजुर्बा बढ़ते घटते अंकों से सिखाया था,  गिन लो उम्र पेड़ों की उन पर बने गोलाकार छल्लों से बताया था, जान लो साल जिए  कितने आदमी के सफेद बालों से क्या वाकिफ नहीं थे वो  दुनिया की सच्चाई से ? क्यों लिपटना  चाहते थे निरंतर चलती खोखली कल्पना से ? मैं वाकिफ हूँ बस पेड़ों पर लगे घावों से नहीं मानती मैं उन छल्लों को जो टूटी हुई जड़ों पे ना उभरी हो नहीं जानती मैं उन बालों के रंगों को ना पिया हो जिन्होंने नजरों से बहते अपमानों को मैं बस रूबरू हूँ भूख के गहरे गड्ढों से भरी दोपहरों से नहीं मानती मैं  ऐसे सालों में गिने जाने वाले ज्ञान को जिस ने ना देखा हो कमर तोड़ती हालातों को 
Have you ever been mine? But, have you ever ceased to be my shine? I couldn't ever taste you and yet you have become my age-old fine wine
रुक जाता है बहना रगों में        साँसों को थाम लेता है लहू ये मेरे दिल का          तेरे अलविदा पे दम तोड देता है
                      WHY?? Why someone hurts me               and I remember you? Why I laugh               and I think of you? Why all the wisdom I have              makes me proud of you? Why, they say, I look pretty              and I picture you? Why fragrances beg me              to take back to you? Why the words I read             let me drift back to a book of you? Why they talk about love            and I feel betrayed by you? Why each time they call my name               and I grab a piece of you? Why there is this world               and I am not with you? Why, My Papa, why this little glass doll of yours                 is forever shattered by you??
I ran. I kept running. Breatheless, panic-stricken, desperate to reach there. It was raining with a thunderstorm. I was thoroughly soaked. I couldn't see anything in dead night's pitch black dread. Yet, with bare feet, I ran.                                        I didn't need to see the street signs to go there.Because, I was going home. I knew, my feet knew, how to proceed.My feet could sense the way home.I was scared. I was trying to keep everything behind and have that shelter again.                                    And finally, I was there.I reached. But, it was not there. It was the same street, same turn, same neighborhood, same place. But, I couldn't find my home. As if someone in the fairytale has lifted it up and placed somewhere else.Where, I didn't know. And started, I started crying. I was not weeping. I was howling.I stood there, yelling. I called it. I called my home. I wanted it to be there anyhow. Else what could I do? It was pouring and I
DIE A LITTLE ...TO SURVIVE what an awesome line... from a netflix series. Isn't it so so true?? We die on daily basis.. a little...piece by piece just to survive..We let our childhood die to be a grown up.But, do we really grow? In d process, we lose both. Sometimes, we let our passions die to let sanity survive. Many times,we let our hearts die to let a relationship survive. And afterwards, we keep counting those dead pieces and keep reminding ourselves that we have...SURVIVED
शोक हा संपत नाही जात वैफल्याची उमगत नाही क्षणात हास्याचे अश्रू होतात जणू सुख माझ्या पदरातच नाही कर्तव्याची वाट थांबत नाही ह्या उन्हाच्या सावलीत माझं घरटंच नाही उसवलेला धागा माझा प्रेमाचा जणू बांधण्याची त्याची रीतच नाही भरारी माझी गरुडाची अन् नाऴ अशांशी तुटतच नाही शहामृगाचे पंख हे ज्यांचे उड्डाणाचा ज्यांना गंधच नाही त्या सूर्याचीही होते फसगत धरणी त्याला दिसतच नाही येतो आडवा चंद्रमा कुणी जसे ग्रहण माझे सुटतच नाही
The most haunted place in the world - PAST
सच्चा होना अच्छा है, आसान है । मुश्किल है तो सच्चाई के अंजाम के साथ जीना ।
They will never say that they hate you. They will say that they loved you. 
That lump in your throat has become a rock on my cold heart now.  That tear in your eye has become the blood in my warm veins now.  That unseen face of yours has become the shadow in my dreams now.  Those unspoken words from your mouth have become chaos in my head now.  That nothingness you were, has become everything in my world now. 
Don't praise this love so much. It's arrogant. It's ruthless. It's indifferent.It's heaven and hell at the same time. It makes the world beautiful and at the same time, it makes it impossible to live in this world without it. It makes you do the things you don't want to. It makes you the person you are not. It's not what you do. It's what you become .
Love me the way you can, I'll love you the way you want. Give me whatever you can, I'll give you everything I have.
Give me back those days. Can you?  Will you? The days when you loved me and I loved you too. The days when you used to keep your feelings hidden and I used to do the same. The days when you looked up to me for everything and I wanted to give you everything you needed.  The days when your pain was my pain and my voice was your relief. The days when your face made me hope for more and you lived in the hope to see mine. The days when you thought I was yours and I wanted you to make me yours. The days when I was your sunshine and you were my soothing moon. The days when we lived. Please, give me back those days. Can you?  Will you? 
When he snores to stifle the sound of your late night heartache cries,  Oh my darling, it's time to quit! When you sleep on a hungry stomach and his is full of satisfaction knowing that yours has only sorrow within, Oh my poor lamb, It's time to quit! ! When your insults feel like a triumph to him even though  you have always kept fighting for his honor, Oh foolest of the all, It's time to quit!!!
Be peace to me and I'll be your passion Be home to me and I'll be your destination
Day by day, everyday , I understand myself more, which leads to understanding others more. Nevertheless, I am still like an unknown island which is waiting to be found by an anonymous traveller. And hence, if I have not found myself yet, how can I find someone else to complement me?  This journey has taken so long time and still I feel like it has begun now. And contradicting this, I have realized the nature of my thirst. I am now fully aware of what will quench it ? And believe me,  it's not another person. Finally, I have understood that no one can complete me by being with me. I am born to be an  incomplete thing. Because incomplete things are the most beautiful and I am beautiful. I am like a drunkard. But, it's beauty and love that I get drunk on. Beauty of words, beauty of music, love for everyone and everything, these are sources of my intoxication. Everyone has five senses and few have six. And I think, I have seven, seventh being able to feel beyond all these six and
I visited Kempty falls situated at Mussorie a few days ago. At different heights amongst the rocks, there are different levels and different views of these falls. This has become a popular tourist place. So, I won't or rather don't want to tell anything about its beauty. I want to share something else that I have experienced  there. After 2 levels of these falls, you again have to climb for the third one and on the way,  you come to a spot, which makes it worth to climb all the way up. This spot has a pond of crystal clear, clean and chilling green water. You get 3-4 steps down from your path up to third level and you are looking at this pond. A big tree with so many branches is peeping down at its mirror image in this water.  Most surprising thing is that, people are so obsessed with visiting the places mentioned by other tourists, they don't bother to take a stop at this pond.  I am sorry to say this, but, it's a loss for them.  I stopped at this pond, sat a